Makar Sankranti : मकर संक्रांति का देशभर में धूमधाम से मनाया जाएगा जश्न!
मकर संक्रांति, सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का पर्व, 14 जनवरी को पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । यह त्योहार फसल कटाई का उत्सव, सूर्यदेव का आशीर्वाद और सर्दी के जाने तथा गर्मी के आने का प्रतीक है। विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाने वाला यह पर्व सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं का खूबसूरत संगम है।
Makar Sankranti : विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति का अनूठा रूप.
- पंजाब: इसे लोहड़ी कहते हैं। अलाव के चारों ओर लोक नृत्य, पंजाबी व्यंजनों का आनंद और गिद्दा-भांगड़ा इसकी खासियत है।
- तमिलनाडु: इसे पोंगल कहते हैं। नए बर्तनों में चावल पकाना, गायों की पूजा, घर की रंगोली से सजावट और हर्षध्वनि इस त्योहार का मुख्य आकर्षण है।
- असम: इसे माघ बिहू कहते हैं। हवा में माजूली बिहू गीत, रंगारंग पर्वतीय परिधान, मेले लगाना और गायों की पूजा इसकी परंपरा है।
- कर्नाटक: इसे युगाधि कहते हैं। हल्दी-कुमकुम का तिलक लगाना, नए कपड़े पहनना, पंचगायव्य की पूजा और खिचड़ी खाना इस त्योहार की रस्म है।
- गुजरात: इसे उत्तरायन कहते हैं। पतंग उड़ाना, घर के बाहर रंगोली बनाना, तिल के लड्डू और गुजिया का आनंद लेना इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं।
Makar Sankranti : कुछ आम परंपराएँ:
- स्नान: गंगा, कावेरी, यमुना जैसे पवित्र नदियों में स्नान कर पाप कर्मों को दूर करने की परंपरा है।
- दान: जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान पुण्य का काम माना जाता है।
- खिचड़ी: विभिन्न दालों और चावल से बनी खिचड़ी इस त्योहार का मुख्य भोजन है।
- तिल: तिल के तेल का दीपक जलाना और तिल का लड्डू खाना शुभ माना जाता है।
- पतंगबाजी: खासकर उत्तरी भारत में पतंग उड़ाना खुशियों और उम्मीदों का प्रतीक है।
- गायों की पूजा: किसानों के जीवन में गायों के महत्व को दर्शाते हुए उनकी पूजा की जाती है।
मकर संक्रांति विभिन्न क्षेत्रों में अपने विशिष्ट रंग और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। यह पर्व न सिर्फ फसल कटाई का उत्सव है, बल्कि सामाजिक सद्भावना, दान-पुण्य और नई शुरुआत की खुशियों को भी दर्शाता है। तो आइए मिलकर इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाएं और जीवन में नई उम्मीदों का आगाज करें!
मकर संक्रांति को मनाने के कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
फसल कटाई का उत्सव: मकर संक्रांति भारत में फसल कटाई के मौसम का पर्व है। सूर्य उत्तरायण होने के साथ ही सर्दियां समाप्त होने लगती हैं और फसलें पक कर तैयार हो जाती हैं। फसल के लिए मेहनत करने के बाद किसान इस त्योहार के माध्यम से खुशियां मनाते हैं और फसल की देवी का आभार व्यक्त करते हैं।
नए साल की शुरुआत: भारत के कुछ राज्यों में, मकर संक्रांति को नए साल के रूप में भी मनाया जाता है। यह समय नई शुरुआत, नई उम्मीदों और सपनों का प्रतीक माना जाता है। लोग अपने अतीत को पीछे छोड़कर शुभ संकल्प लेते हैं और नए साल में उन्नति का संकल्प करते हैं।
सूर्यदेव का आशीर्वाद: मकर संक्रांति सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है। माना जाता है कि इस समय से दिन बड़े होने लगते हैं और प्रकाश अंधकार पर विजय प्राप्त करता है। लोग सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा-पाठ करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं।
सामाजिक सद्भावना: मकर संक्रांति सभी जातियों, धर्मों और वर्गों के लोगों को एक साथ लाने का पर्व है। लोग गिले-शिकवे भुलाकर मिलकर खुशियां मनाते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। यह त्योहार सामाजिक सद्भावना और भाईचारे का प्रतीक है।
परंपराओं का पालन: मकर संक्रांति पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को याद करने का अवसर है। लोग घरों की साफ-सफाई करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, रंगोली बनाते हैं, पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और खिचड़ी जैसे पारंपरिक व्यंजन खाते हैं। ये परंपराएं संस्कृति और विरासत को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
तो समग्र रूप से, मकर संक्रांति फसल कटाई का उत्सव, नए साल की शुरुआत, सूर्यदेव के आशीर्वाद, सामाजिक सद्भावना और परंपराओं का पालन का अद्भुत संगम है, जो खुशियों और उम्मीदों से भरा हुआ है।
मकर संक्रांति की कथा : Story of Makar Sankranti
पुराणों के अनुसार, एक समय में एक धनी राजा था। उसका नाम यदु था। यदु के पास बहुत सारी धन-संपत्ति थी, लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी। वह बहुत दुखी रहता था।
एक दिन, यदु ने एक ऋषि से पुत्र प्राप्ति के लिए उपाय पूछा। ऋषि ने उसे बताया कि उसे मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। यदु ने ऋषि की बात मानी और मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की विधि-विधान से पूजा की।
पूजा के बाद, यदु को एक स्वप्न आया। स्वप्न में सूर्य देव ने उसे बताया कि उसकी पत्नी जल्द ही गर्भवती हो जाएगी और उसे एक पुत्र होगा।
स्वप्न के अनुसार, यदु की पत्नी गर्भवती हो गई और कुछ समय बाद उसे एक पुत्र हुआ। यदु के पुत्र का नाम कृष्ण था। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करने से यदु को पुत्र प्राप्ति हुई थी। इसलिए, मकर संक्रांति को पुत्र प्राप्ति का त्योहार भी कहा जाता है।
मकर संक्रांति की अन्य कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, एक समय में एक गरीब किसान था। उसका नाम धनीराम था। धनीराम बहुत मेहनती था, लेकिन उसकी फसल कभी नहीं अच्छी होती थी। वह हमेशा कर्ज में डूबा रहता था।
एक दिन, धनीराम को एक ऋषि मिले। ऋषि ने उसे बताया कि उसे मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए। धनीराम ने ऋषि की बात मानी और मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की विधि-विधान से पूजा की।
पूजा के बाद, धनीराम की फसल बहुत अच्छी हुई। वह कर्ज से मुक्त हो गया और बहुत धनी हो गया।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करने से धनीराम की फसल अच्छी हुई थी। इसलिए, मकर संक्रांति को फसल कटाई का त्योहार भी कहा जाता है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह त्योहार फसल कटाई, नए साल की शुरुआत, सूर्य देव का आशीर्वाद और सामाजिक सद्भावना का प्रतीक है। मकर संक्रांति की कथाएँ इस त्योहार के महत्व को दर्शाती हैं।
पतंगबाजी करना मकर संक्रांति के सबसे मजेदार और प्रतीकात्मक परंपराओं में से एक है! वजहें जानें: Makar Sankranti
1. सूर्य के उत्तरायण का जश्न: जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब दिन बड़े होने लगते हैं और सर्दियां समाप्त होने का संकेत मिलता है। पतंग को ऊपर उड़ाना, जैसे सूरज आसमान में ऊंचा चढ़ता है, इस परिवर्तन के उत्सव का एक तरीका है।
2. बुरी ऊर्जाओं को दूर भगाना: माना जाता है कि पतंग के साथ नकारात्मक विचार और बुरी ऊर्जाएं भी आसमान में चली जाती हैं। पतंग के टूटने पर ये बुराइयां भी खत्म हो जाती हैं, जिससे सकारात्मकता और नए साल की शुभ शुरुआत होती है।
3. खुशियों का प्रतीक: पतंग का रंगीन और हल्कापन, उम्मीद, स्वतंत्रता और उड़ान की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। बच्चों से लेकर बड़ों तक, सभी हवा में लहराती पतंगों को देखकर आनंदित होते हैं, जो त्योहार की खुशियों को बढ़ाता है।
4. सामाजिक मेलजोल: पतंगबाजी परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर खेलने का एक शानदार तरीका है। लोग छतों पर इकट्ठा होते हैं, एक-दूसरे की पतंगों को लूटने और हराने की कोशिश करते हैं, जिससे हंसी-मजाक और त्योहार का जश्न उमंग से भर जाता है।
5. परंपरा का पालन: यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और बच्चों को अपने पूर्वजों की संस्कृति और रीति-रिवाजों से जोड़ती है। वैसे ही, जैसे पतंग आसमान में ऊंची उड़ती हैं, वैसे ही हमारा जीवन भी खुशियों और सफलता से भरा हो, यह पतंगबाजी का शुभ संदेश है।
तो, मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाना सिर्फ मनोरंजन ही नहीं है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता, उम्मीद और नए साल की खुशियों का भी प्रतीक है! आइए इस त्योहार को हर्षोल्लास और सुरक्षित तरीके से मनाएं!Makar Sankranti
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